छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद का अंत: उत्तरी बस्तर और अबूझमाड़ की विजय 2025 की ऐतिहासिक सफलता

छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद की शुरुआत और 2023 तक की गतिविधियों से संबंधित विस्तृत जानकारी नीचे दी गई है:

छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद की शुरुआत और पृष्ठभूमि

  • उत्पत्ति: नक्सलवाद की शुरुआत मूल रूप से पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव से 1967 में हुई थी। यह आंदोलन मार्क्सवाद के वर्ग संघर्ष के सिद्धांत पर आधारित था और इसे कानू सान्याल, चारू मजूमदार और जंगल संथाल जैसे नेताओं ने प्रारंभिक नेतृत्व प्रदान किया।
  • विचारधारा: यह चीनी कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग के विचार पर आधारित है, जिसे ‘माओवाद’ भी कहा जाता है, जिसका मूल मंत्र है कि ‘क्रांति बंदूक की नाल से निकलती है’।
  • छत्तीसगढ़ में आगमन: छत्तीसगढ़ (जो उस समय मध्य प्रदेश का हिस्सा था) में इन असामाजिक तत्वों की गतिविधियाँ 1967-68 के आसपास नक्सलवाद के रूप में सामने आईं। हालाँकि, यह समस्या वर्ष 2000 के आसपास छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद और अधिक गंभीर और चुनौतीपूर्ण रूप में सामने आई।
  • कारण:
    • ​राज्य के कई आंतरिक क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव (जैसे- स्कूल, अस्पताल, सड़कें)।
    • ​ग्रामीणों में राज्य के प्रति असंतोष की भावना
    • ​नक्सलियों द्वारा इसी असंतोष का फायदा उठाकर दुष्प्रचार के माध्यम से अपने ‘कैडरों’ की भर्ती करना।
    • ​छत्तीसगढ़ का बस्तर संभाग और दण्डकारण्य का जंगल नक्सलियों का गढ़ बन गया क्योंकि यहाँ की भौगोलिक स्थिति और सर्वे का अभाव उन्हें छिपने में मदद करता है।
    • ​आंध्र प्रदेश से भी नक्सली गुटों का छत्तीसगढ़ में प्रवेश हुआ, विशेषकर 90 के दशक में जब आदिवासी जुड़ना शुरू हुए।

छत्तीसगढ़ में नक्सली गतिविधियों की प्रमुख घटनाएँ (प्रारंभ से 2023 तक का एक अवलोकन):

​छत्तीसगढ़ पिछले लगभग 50 सालों से नक्सलवाद से संघर्ष कर रहा है और इस दौरान कई बड़े हमले हुए हैं:

  • 2007: बस्तर में 300 से अधिक विद्रोहियों ने 55 पुलिसकर्मियों की हत्या की।
  • 2009 (जून 20): दंतेवाड़ा में नक्सली हमले में CRPF के 11 जवान शहीद हुए।
  • 2010 (अप्रैल 6): दंतेवाड़ा हमले में CRPF के 75 जवान शहीद हुए, जो सबसे बड़े हमलों में से एक था।
  • 2010 (जून 29): नारायणपुर जिले में नक्सली घात लगाकर हमला किया, जिसमें 26 CRPF जवान मारे गए।
  • 2013 (मई 25): झीरम घाटी हमला (बस्तर), जिसमें छत्तीसगढ़ कांग्रेस के 25 से अधिक नेता और कार्यकर्ता मारे गए, जिनमें पूर्व राज्य मंत्री महेंद्र कर्मा भी शामिल थे।
  • 2014 (मार्च 11): सुकमा जिले में माओवादी हमले में 15 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए।
  • 2017 (अप्रैल 24): सुकमा में माओवादियों के साथ मुठभेड़ में 24 CRPF जवान शहीद हुए।
  • 2021 (अप्रैल): बीजापुर और सुकमा जिलों की सीमा से सटे टेर्रम के जंगलों में नक्सलियों के साथ गोलीबारी में 22 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए।
  • 2023 (अप्रैल 26): दंतेवाड़ा जिले में माओवादियों द्वारा किए गए IED विस्फोट में 10 पुलिसकर्मी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड – DRG के जवान) शहीद हुए। यह 2023 की एक बड़ी घटना थी।

सरकार और सुरक्षा बलों के प्रयास:

  • DRG (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड): 2008 में इसकी शुरुआत बस्तर डिवीजन में नक्सलियों से मुकाबला करने के लिए की गई। इसमें स्थानीय युवाओं, यहाँ तक कि आत्मसमर्पण कर चुके नक्सलियों को भी भर्ती किया जाता है।
  • ऑपरेशन और विकास:
    • ​2018 से 2022 के बीच, गृह मंत्रालय के अनुसार, नक्सलियों ने 1,132 हमलों को अंजाम दिया। लेकिन सुरक्षा बल लगातार जवाबी कार्रवाई कर रहे हैं।
    • ​2010 में वामपंथी उग्रवाद (LWE) की हिंसा अपने चरम पर थी, लेकिन तब से इसमें कमी आई है। 2023 में LWE से संबंधित मौतों की संख्या 2010 के 1,005 से घटकर 138 हो गई।
    • ​LWE हिंसा की रिपोर्ट करने वाले पुलिस स्टेशनों की संख्या भी 2010 के 465 से घटकर 2023 में 171 रह गई।
    • बुनियादी ढाँचे का विकास: सड़क निर्माण, दूरसंचार टावरों की स्थापना और किलेबंद सुरक्षा शिविरों/पुलिस स्टेशनों को बढ़ाना (2014 में 66 से 2024 में 612)।
    • आत्मसमर्पण नीति: सरकार आत्मसमर्पण और पुनर्वास कार्यक्रमों के माध्यम से नक्सलियों को मुख्यधारा में वापस लाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है।

निष्कर्ष (2023 तक की स्थिति):

​2023 तक, छत्तीसगढ़ नक्सलवाद की समस्या से जूझ रहा था, लेकिन सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाई, आत्मसमर्पण नीतियों और विकास कार्यों के कारण इसका प्रभाव क्षेत्र धीरे-धीरे सिकुड़ रहा था। 2023 की दंतेवाड़ा घटना एक बड़ा हमला थी, लेकिन समग्र रूप से, 2010 के चरम की तुलना में हिंसा और प्रभावित जिलों की संख्या में महत्वपूर्ण कमी आई थी। बस्तर संभाग अभी भी प्रभावित है, लेकिन सरकार और सुरक्षा बल इस समस्या को समाप्त करने के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं।

2023 से वर्तमान तक नक्सल विरोधी अभियान: एक निर्णायक दौर

​दिसंबर 2023 में राज्य में नई सरकार के गठन और केंद्र सरकार के ‘नक्सल मुक्त भारत अभियान’ के तहत, छत्तीसगढ़ में नक्सल विरोधी अभियानों को अभूतपूर्व गति मिली है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मार्च 2026 तक देश को नक्सलवाद से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है।

​प्रमुख अभियान और रणनीतियाँ:

  1. सुरक्षा कैम्पों का विस्तार:
    • फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस (FOBs): नक्सल प्रभावित इलाकों के अंदरूनी कोर क्षेत्रों में तेजी से नए सुरक्षा कैम्प (अग्रिम चौकियां) स्थापित किए जा रहे हैं। हर 3-4 किलोमीटर के दायरे में ये चौकियां बनाई जा रही हैं।
    • सफलता: 2024 में 58 नई सुरक्षा चौकियां बनाई गईं और 2025 में 88 और नई चौकियों का निर्माण जारी है। ये कैम्प पहली बार स्थानीय प्रशासन को इन दुर्गम क्षेत्रों तक मुफ्त राशन, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और अन्य सरकारी योजनाओं को पहुंचाने में मदद कर रहे हैं।
  2. आक्रामक कार्रवाई में वृद्धि (2024 – 2025):
    • ऑपरेशनल सफलता: सुरक्षा बलों (CRPF, BSF, DRG, ग्रेहाउंड्स, आदि) ने 2024 से लगातार बड़े ऑपरेशन किए हैं।
    • इज़ाफ़ा: वर्ष 2024 में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों की संख्या में वर्ष 2023 की तुलना में लगभग 750 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
    • बड़ी सफलता (हाल के आंकड़े):
      • मार्च 2025: बीजापुर और कांकेर में दो अलग-अलग ऑपरेशन में 22 नक्सली मारे गए।
      • सितंबर 2025: दंतेवाड़ा जिले में 71 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया।
      • अक्टूबर 2025 (वर्तमान स्थिति): हाल ही में बस्तर में 210 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया है। केंद्रीय गृह मंत्री ने घोषणा की है कि उत्तर बस्तर और अबूझमाड़ के अधिकांश क्षेत्र अब नक्सल मुक्त हो गए हैं।
  3. आत्मसमर्पण और पुनर्वास:
    • सरेंडर में वृद्धि: 2023 से वर्तमान तक 1700 से अधिक नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। अकेले दिसंबर 2023 से (लगभग एक वर्ष के भीतर) 1,045 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है।
    • पुनर्वास: सरकार आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को पुनर्वास नीति का लाभ दे रही है, जिससे वे शांतिपूर्ण जीवन जी सकें।
  4. नक्सलियों की वित्तीय पहुँच को विफल करना (SAMADHAN रणनीति):
    • वित्तीय जाँच: धन शोधन निवारण कानून (PMLA) के तहत मामले दर्ज किए गए हैं और नक्सलियों को धन मुहैया कराने वाले नेटवर्क को तोड़ा जा रहा है।
    • ​यह रणनीति (जिसका एक घटक ‘N’ – No access to financing है) नक्सलियों की रीढ़ तोड़ने में महत्वपूर्ण साबित हो रही है।

​वर्तमान निष्कर्ष (अक्टूबर 2025 तक):

  • नक्सलवाद का संकुचन: 2013 में देशभर के 126 जिले नक्सल प्रभावित थे, जो अप्रैल 2024 तक केवल 38 जिलों तक सिमट गया है।
  • विकास कार्य: नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिए बजट आवंटन में 300 प्रतिशत की वृद्धि की गई है, ताकि बुनियादी सुविधाओं का तेजी से विकास हो सके और ग्रामीण मुख्यधारा से जुड़ सकें।
  • लक्ष्य: सुरक्षा बलों के प्रयासों और सरकारी योजनाओं के तालमेल से छत्तीसगढ़ में 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह से समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • नक्सल मुक्त जिले: राजनांदगांव, कवर्धा और खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जैसे जिले अब नक्सल मुक्त जिलों की श्रेणी में आ गए हैं।