गाँव के जिनगी: हमर छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ – एक धरती जिहां हर कोना म संस्कृति के सुगंध हवय, अउ हर गाँव म अपन एक अलग किसम के जिनगी बसय। गाँव मन छत्तीसगढ़ के आत्मा हवंय, जिहां धरती के गंध, मेहनत के पसीना, अउ अपनापन के मिठास मिलथे।

आज हम बात करबो गाँव के जिनगी के बारे म – जिहां सच्चे म अपन छत्तीसगढ़ बसथे।


1. गाँव के सुरता – माटी के खुशबू

गाँव म जउन माटी के खुशबू मिलथे, वोकर तुलना शहर के सीमेंट-बालू ले कभू नइ हो सकय। भले गाँव म चमचमाहट कम हो, फेर अपनपन भरपूर रहिथे। बिहान के समय जब मुर्गा बांग देवय, अउ गाय-भैंस के गोठ मन ले आवाज आवय, तब लगथे जिनगी सच म जाग गे हवय।


2. रहन-सहन अउ घर-दुआर

गाँव के मनखे मन सादा रहिथें। माटी के घर, खपरा के छानी, चौक म तुलसी के चउरा – ए सब गांव के खासियत आय। आजो घलो कई घर म गोबर ले लिपे-बुहारे के परंपरा जिन्दा हवय।

घर म दालान म बइठक होथे, जिहां रतिहा सब झन संग म बइठ के बइठका करथें, गीत गाथें, कहिनी सुनथें।


3. खेती-बाड़ी: जिनगी के आधार

छत्तीसगढ़ के गाँव म खेती सिरिफ रोजगार नइ, बल्क‍ि एक परंपरा हवय। खेती ह हमर जिनगी के रीढ़ आय। धान के कटोरा कहाय वाला ए धरती म साल दर साल किसान अपन माटी ला सींच के जिनगी चलाथे।

धान, कोदो, कुटकी, तिवड़ा, अरहर, सरगी जइसन फसल मन के खेती अबो गाँव म चलथे। आजकल ट्रैक्टर अउ थ्रेसर आ गे हवय, फेर हल-बैल के भी अपन अलग महत्त्व आय।


4. पशुपालन अउ जंगल

गाँव के घर म एक-दू गो गाय-भैंस, बकरी, मुर्गी होय ला आम बात आय। ए मन सिरिफ दूध अउ आमदनी के साधन नइ, बल्क‍ि घर के सदस्य जइसन होथे।

अऊ जंगल ह गाँव के जीवन म अतका जरूरी हवय जइसने खार होथे भात बर। महुआ, चार, तेंदू, हर्रा, बहेरा – ए सब जंगल के देन हवंय, जेन ले गाँव के जीवन चलथे।


5. लोक-परंपरा अउ तिहार

गाँव म तिहार मनाय के अपन तरीका होथे। ए तिहार मन सिरिफ पूजा नइ होय, एमा लोकनृत्य, गीत, अउ समाजिक मिलन के अवसर रहिथे।

हरेली, पोला, तीजा, गोवर्धन, दीवाली, फागुन – ए तिहार मन म गाँव पूरा रंग-बिरंगा हो जाथे।

सुआ, करमा, ददरिया, भोजली – ए गीत मन म गाँव के मन के भावना झलकथे। करमा नाच अउ सुआ गीत म गजब के एकता अऊ उमंग देखे ला मिलथे।


6. गाँव के मेल-जात्रा

छत्तीसगढ़ के गाँव म मेला अउ जात्रा के खास महत्व हवय। बूढ़ादेव, दंतेश्वरी माई, शीतला माता जइसन लोकदेवता मन के पूजा म मेला लगथे। एमा दूर-दूर के गाँव ले मनखे आके देवता के दर्शन करथें अउ झूला, दुकान, नाचा देखथें।

मेल-जात्रा सिरिफ धार्मिक नइ होवय – एमा समाजिक संबंध गाढ़ होथे, अउ व्यापार भी चलथे।


7. शिक्षा अउ बदलाव

पहिले गाँव म पढ़ई-लिखई म कम ध्यान दी जाथे, फेर अब स्कूल खुल गे हवय। सरकारी स्कूल, आंगनबाड़ी, आवासीय विद्यालय – अब गाँव के लइका मन पढ़ई म जुड़त दिखथें।

मोबाइल अउ इंटरनेट अब धीरे-धीरे गाँव तक पहुँचत हवय, जेन ले ऑनलाइन क्लास, डिजीटल योजना, अउ सरकारी सेवा के जानकारी घलो मिल पाथे।


8. गाँव म रोजगारी के हाल

गाँव म खेती-बाड़ी के संग मनखे मन दूसर काम घलो करथें – जइसे मनरेगा, चराई, मजदूरी, छोटा-मोटा व्यापार

कइ लइका मन शहर म काम करत रहिथें, फेर जब फसल के समय आथे, सब झन गाँव आ जाथें – एही तो अपन माटी के मोह आय।


9. गाँव के महिलाएं: परंपरा संग प्रगति

गाँव के मया-ममत्व म महिलाएं के योगदान बहुते हवय। महिला समूह (SHG), बिहान योजना, पोषण योजना – ए सब म गाँव के महतारी, बहिनी मन भाग लेत हवंय।

महिला मन अब खेती, कारोबार, अउ पढ़ई म हिस्सा लेथें। तीजा-पोला मन म गीत गाके अपन भावना घलो जताथें।


10. आधुनिकता के असर

अब गाँव घलो बदलत जात हे। पक्की सड़क, बिजली, मोबाइल टावर, शौचालय, पेंशन योजना, प्रधानमंत्री आवास – ए सब धीरे-धीरे गाँव ला बदलत हवे।

सहर के जइसन चमक-धमक भले नइ हो, फेर गाँव म अबो शांति, अपनापन, अउ संस्कृति के गहिरा झलक हवय।


11. छत्तीसगढ़ी भाषा: गाँव के गहना

गाँव म सबले बड़ बात आय – छत्तीसगढ़ी बोली। ए भाषा म अपन मिठास हवय, अपनपन हवय। चाहे ददरिया होवय, चाहे लड़ई – छत्तीसगढ़ी बोली ह हमेशा सबके मन ला जोड़े के काम करथे।

आज जरूरत हे कि हम अपन बोली, अपन संस्कृति ला बचाके रखन, अउ अपन गाँव म बने रहन।


12. गाँव के जिनगी: अब अउ आगे

हमर गाँव – हमर पहिचान आय। गाँव म जिनगी भले साधारण हो, फेर हर दिन म अपन कहानी होथे।

जहाँ बिहान म बैल ह गोठ के बाहर बंधे रहिथे, अउ संझा म चौक म बइठका लगथे – एही म जिनगी के सच्चा आनंद हवय।

आज जब सहर म जिनगी तेज हवय, तनाव हवय – गाँव म अबो घलो मया, सुकून, अउ अपनापन जिन्दा हवय।


निष्कर्ष:

छत्तीसगढ़ के गाँव मन सिरिफ जगह नइ, वो मन संस्कृति, परंपरा अउ भावनात्मक जुड़ाव के केंद्र हवंय। “गाँव के जिनगी” ह सिखाथे कि सादा रहो, मया बाँटो अउ माटी ले जुड़े रहो।

आइए हम सब मिलके अपन गाँव, अपन छत्तीसगढ़, अउ अपन बोली ला सहेजे अउ अगली पीढ़ी तक पहुँचाए।

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